रिज़र्व बैंक ने भुगतान प्रणाली संबंधी बुकलेट जारी की, जिसमें मिलिनियम के दूसरे दशक के दौरान यथा, 2010 के प्रारंभ से लेकर 2020 के अंत तक भारत में भुगतान और निपटान प्रणाली की यात्रा को शामिल किया गया है। इस बुकलेट में केंद्रीय बैंक ने बिटक्वाइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी शुरू करने की जरूरत पर बल दिया है।
यह बुकलेट 2010 से 2020 के दौरान भुगतान और निपटान प्रणालियों के क्षेत्र में भारत के परिवर्तन को कैप्चर करती है और अन्य बातों के साथ-साथ डिजिटल भुगतान प्रणाली, विभिन्न समर्थक (एनबलर्स), उपभोक्ताओं को उपलब्ध भुगतान विकल्प, अंगीकरण की सीमा इत्यादि को रेखांकित करने वाले विधिक और विनियामक वातावरण का वर्णन करती है।
रिज़र्व बैंक इससे पहले वर्ष 1998 और 2008 में भुगतान प्रणाली संबंधी बुकलेट लाया था। श्रृंखला की इस तीसरी बुकलेट का देश में भुगतान प्रणाली के विकास के बारे में अधिक रूचि रखनेवालों के लिए एक संदर्भ दस्तावेज के रूप में काम करने की उम्मीद है।
केंद्रीय बैंक देश में अपनी डिजिटल करेंसी (Digital Currency, आभासी मुद्रा) लाने पर विचार कर रहा है। उसने कहा कि भुगतान उद्योग के तेजी से बदलते परिदृश्य, निजी डिजिटल टोकनों के आने और कागज के नोट या सिक्कों के प्रबंधन से जुड़े खर्च बढ़ने के मद्देनजर दुनिया भर में कई केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) लाने पर विचार कर रहे हैं। केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी की संभावनाओं के अध्ययन और इनके लिए दिशा-निर्देश तय करने के लिए आरबीआई ने एक अंतर-विभागीय समिति भी बनायी है।
CBDC एक लीगल करेंसी है तथा डिजिटल रूप में सेंट्रल बैंक की लाइबिलिटी है जो सॉवरेन करेंसी के रूप में उपलब्ध है। यह बैंक की बैलेंसशीट में दर्ज है। यह करेंसी का इलेक्ट्रॉनिक रूप है जिसे आरबीआई द्वारा जारी कैश में कंवर्ट या एक्सचेंज किया जा सकता है।
आरबीआई ने इस बुकलेट में कहा है कि हालांकि दुनिया भर में प्राइवेट डिजिटल करेंसी (PDCs)/वर्चुअल करेंसीज (VCs)/ क्रिप्टोकरेंसीज (CCs) की लोकप्रियता हाल के दिनों में बढ़ी है, लेकिन भारत सरकार और रिजर्व बैंक अभी ऐसी करेंसीज को लेकर संदेह जता रहे हैं और इसके जोखिम पक्ष को लेकर ज्यादा गंभीर हैं। आरबीआई ने आगे कहा कि इन सबके बावजूद हम देश में फ्लैट करेंसी के डिजिटल वर्जन की संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं और उसका संचालन कैसे किया जाए, उस पर विचार कर रहे हैं।
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