को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी में कुछ सदस्यों की राजनीति और मैनेजिंग कमिटी की लापरवाही किस तरह से वहां रहने वाले और उनकी फैमिली को खतरे में डालती है, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं। किताब का नाम है- हाउसिंग सोसायटी में सियासत; जान पर आफत!
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बड़े बड़े शहरों और उससे सटे उपनगरों में को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी हकीकत बन गई है। इन हाउसिंग सोसायटियों में यहां रहने वालों के सिर्फ घर ही नहीं होते, बल्कि उनकी पूरी दुनिया बसती है। इसलिए कभी भी किसी भी वजह से इन सोसायटियों की बिल्डिंग धराशायी होती है तो यहां रहने वालों की पूरी दुनिया उजड़ जाने की आशंका रहती है। बिल्डिंग धराशायी कई कारण से हो सकती है जैसे समय पर बिल्डिंग का रिपेयर, क्रैक फिलिंग, कलर, साफ-सफाई नहीं करवाना।
हाउसिंग सोसायटी को मैनेज करने की जिम्मेदारी सोसायटी के लोगों से मिलकर बनी मैनेजिंग कमिटी पर रहती है। लेकिन, कई बार कमिटी के सदस्यों द्वारा बिल्डिंग के रिपेयर के कामों में देरी ही नहीं काफी देरी और लापरवाही की वजह से बिल्डिंग की हालत जर्जर हो जाती है। ऐसी हालत में बिल्डिंग के धराशायी होने की पूरी आशंका बन जाती है। हाउसिंग सोसायटी और उसके मैनेजिंग कमिटी के सदस्यों द्वारा की जाने वाली सियासत भी बिल्डिंग को खतरनाक बनाती है। इन सबसे कैसे निपटा जाए, इस किताब में आप पढ़ सकते हैं।
(('बिना प्रोफेशनल ट्रेनिंग के शेयर बाजार जरूर जुआ है'